ग़म का दिल पर घाव बहुत गहरा होता है, ख़ुशी तो कोई भूल भी जाये मगर ग़म के अंधेरे कोई नहीं भूल पाया, ऐसा ही इस गीत में आनंद साहब ने लिखा है, मैं तो रोता हूँ साथ सावन भी रोता है! और यही सच है।
गीत: लगी आज सावन की फिर वह झड़ी है / Lagi aaj sawan ki phir wo jhari hai
गीतकार: आनन्द बक्षी / Anand Bakshi
फ़िल्म: चाँदनी १९८९ / Chandni 1989
संगीत: शिव-हरि / Shiv-Hari
स्वर: सुरेश वाडेकर / Suresh Wadekar
गीत के बोल:
लगी आज सावन की फिर वह झड़ी है-2
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है,
लगी आज सावन की फिर वह झड़ी है...
कुछ ऐसे ही दिन थे वह जब हम मिले थे
चमन में नहीं फूल दिल में खिले थे,
वही तो है मौसम मगर रुत नहीं वह
मेरे साथ बरसात भी रो पड़ी है,
लगी आज सावन की फिर वह झड़ी है-2
कोई काश दिल पे ज़रा हाथ रख दे
मेरे दिल के टुकड़ों को इक साथ रख दे,
मगर यह है ख्वाबों ख़्यालों की बातें
कभी टूटकर चीज़ कोई जुड़ी है,
लगी आज सावन की फिर वह झड़ी है-2
मेरा पसंदीदा गीत...
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
साहब, आप दोनों का बहुत-बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत जोरदार गीत है सुनते ही मन प्रसन्न हो जाता है .
ReplyDeleteबहुत अच्छा गाना है यह....पर नहीं खुला....कुछ गडबडी है।
ReplyDeleteमहेन्द्र जी धन्यवाद, संगीता जी खुलेगा शायद आपके नेटवर्क की बैण्ड विड्थ का कोई चक्कर होगा, मैंने चेक किया है चल रहा है!
ReplyDeleteधन्यावाद!
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